मशहूर शायर बशीर भद्र का एक शेर है; ‘लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में’

ये शेर आज के हालात पर एकदम सटीक है। दिल्ली में हुई हिंसा में सैकड़ों लोगों के घर जल गए करीब 3 दर्जन से ज्यादा परिवार वालों ने अपने घरों के चिरागों को खो दिया। जहाँ कल तक बच्चे खेलते थे वहां आज लाशों का ढेर लगा हुआ है। जिस आँगन में लोग हँसते खेलते थे वहां नफरत का सन्नाटा पसरा हुआ है। जिन सड़कों को बनने में इतना वक़्त लगा वो महज़ कुछ दिनों में मलबे का ढेर हो गयी। बच्चों के स्कूलों को नफरत की आग निगल गयी।

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